(विकास गर्ग)
देहरादून। भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड के पूर्व संगठन महामंत्री संजय कुमार ने हरेला पर्व पर सबको शुभकामनाएं देते हुए कहा उत्तराखंड के कुछ प्रमुख पर्व हैं जिसमें से एक है हरेला। जिसकी चर्चा लोग खूब करते हैं।आज यह त्योहार देव भूमि में धूम धाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व के बाद ही यहां सावन का पवित्र माह शुरू होता है।
उन्होने कहा प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण राज्य उत्तराखंड की कला एवं संस्कृति दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसे देवों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां की संस्कृति में विविधताएं देखने को मिलती है जिसके कारण यहां पर देशी विदेशी पर्यटकों का खूब जमावड़ा लगता है. उत्तराखंड के कुछ प्रमुख पर्व है जिसमें से एक है हरेला पर्व जिसकी चर्चा लोग खूब करते हैं। आज यह पर्व देव भूमि में धूम धाम से मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि उत्तराखंड में इस पर्व के बाद ही सावन की शुरूआत होती है।
श्री कुमार ने कहा हरेला का पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने की खुशी में मनाया जाता है. इसके बाद से ही यहां पर सावन के पवित्र महीने की शुरूआत होती है. आपको बता दें कि हरेला का अर्थ होता है हरियाली ।
इस पर्व के 9 दिन पहले घर के मंदिर में सात प्रकार के अन्न जिसमें गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट के बीजों को रिंगाल की टोकरी में रोपा जाता है।
फिर 10 दिन बाद इन्हें काटकर घर का मुखिया इनकी पूजा करते हैं,जिसे हरेली पतीसना के नाम से जाना जाता है. इसके बाद भगवान को चढ़ाया जाता है. फिर घर की बूजुर्ग महिला सभी सदस्यों को यह हरी घास कान के पीछे रखती हैं. यह रखते हुए गीत गाने की भी परंपरा है।
संजय कुमार ने आगे कहा हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में. हरेला का मतलब है हरियाली. उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है, तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है, उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है. यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है, जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है, जिससे 9 दिन पहले मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है. कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं. इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है. घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं।
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