16 दिसंबर भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया : विकास गर्ग राष्ट्रीय अध्यक्ष
(NewsExpress 18)
देहरादून। नरेंद्र मोदी सेना सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 16 दिसंबर के दिन जारी एक बयान में कहा 16 दिसंबर भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा वह दिन है,जो पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक विजय की याद दिलाता है। 16 दिसंबर 1971, यही वह तारीख थी, जब भारत ने युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। इस युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे।
श्री गर्ग ने बताया इस युद्ध के बाद 93 हजार पाकिस्तान पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था और पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ था, जिसे आज हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। इस युद्ध से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जो आज भी याद की जाती हैं और भारत की विजय गाथा सुनाई जाती है। जानिए कुछ खास बातें –
इस युद्ध की पृष्ठभूमि साल 1971 की शुरुआत से ही बनने लगी थी। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया था।
विकास गर्ग ने कहा इसके बाद शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसा होने के बाद पाकिस्तान से कई शरणार्थी लगातार भारत आने लगे थे। जब भारत में पाकिस्तानी सेना के दुर्व्यवहार की खबरें आने लगीं, तब भारत पर यह दबाव पड़ने लगा कि वह वहां पर सेना के जरिए हस्तक्षेप करे।
उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि अप्रैल में पाकिस्तान पर आक्रमण किया जाए। इस बारे में इंदिरा गांधी ने थलसेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ की राय ली। मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी से स्पष्ट कह दिया कि वे पूरी तैयारी के साथ ही युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं।
राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र मोदी सेना विकास गर्ग ने कहा।शाम के साढ़े चार बजे जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे। पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और नियाज़ी एक मेज के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने नम आंखों से अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। स्थानीय लोग नियाजी की हत्या पर उतारू थे। भारतीय सेना के वरिष्ठ अफसरों ने नियाज़ी के चारों तरफ एक सुरक्षित घेरा बनाकर बाद में नियाजी को बाहर निकाला गया। युद्ध के बाद 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया।
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