(विकास गर्ग)
देहरादून । हद हो गई,मुख्यमंत्री के फैसले पर हाई कोर्ट जाने की हिम्मत,कहीं किसी षड्यंत्र की बू तो नहीं
वैसे तो न्यायालय की शरण में जाना आजकल कुछ फैशन सा हो गया है छोटी-छोटी बात को लेकर मा0 न्यायालय की शरण में पहुंच जाना आज के समय में कोई बड़ी बात नहीं रह गई है।
लेकिन किसी जिम्मेदार अधिकारी का किसी जिम्मेदार व्यक्ति का न्यायालय में जाना एक सवाल जरूर खड़ा करता है की आज तक जब उन्हें विभिन्न स्थानों पर सम्मान के साथ पोस्टिंग दी जा रही थी उन्होंने इसका कभी भी ना तो विरोध किया और ना कभी भी न्यायालय की शरण में गए।
आज जब आइपीएस अधिकारी बरिंदर जीत सिंह का ऊधमसिंह नगर के एसएसपी पद से हुए तबादला हुआ तो वह विचलित हो गए और न्यायालय की शरण में जा पहुंचे उन्होंने आरोप भी लगाया कि उनका जो स्थानांतरण हुआ है उनका किसी नेता की सय पर तबादला किया गया है इसी के साथ उन्होंने अपने कई सीनियर अधिकारियों के भी नाम याचिका में डाले हैं।
जिसमें उन्होंने उन पर उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है उनकी 12 साल की सर्विस में आज तक उन्होंने एक भी पत्र अपने किसी सीनियर अधिकारी को लिखा हो कि मेरा उत्पीड़न किया जा रहा है तो बात अलग है।
आज आईपीएस बरिंदर जीत सिंह ने न्यायालय की शरण में जाकर एक नई परिपाटी शुरू कर दी है क्या न्यायालय की शरण में जाना न्याय संगत है यह तो पार्ट ऑफ़ सर्विस है आप सर्विस में रहेंगे तो आपको सीनियर अधिकारियों की भी सुननी पड़ेगी और कहीं ना कहीं राजनेताओं से भी टकराना पड़ेगा अगर आप इन बातों पर न्यायालय की शरण में जाने लगे तो फिर देश और प्रदेश का कोई भी अधिकारी कोर्ट की शरण में जाता है तो वह गलत नहीं होगा।
क्या है मामला
नैनीताल। आइपीएस अधिकारी बरिंदर जीत सिंह ने डीजीपी अनिल रतूडी, डीजी कानून व्यवस्था अशोक कुमार व पूर्व आईजी कुमाऊं जगतराम जोशी के खिलाफ खोला मोर्चा पिछले दिनों ऊधमसिंह नगर के एसएसपी पद से हुए तबादले को उन्होंने हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है हाई कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है।कुछ दिन पूर्व ही ऊधमसिंह नगर के एसएसपी बरिंदर जीत सिंह का तबादला शासन ने आइआरबी कमांडेंट के पद पर कर दिया था और पौड़ी गढ़वाल के एसएसपी दलीप सिंह कुंवर को ऊधमसिंह नगर की कमान सौंप दी थी। शुक्रवार को हाई कोर्ट में बरिंदर जीत सिंह ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि ऊधमसिंह नगर में तैनाती के दौरान डीजीपी अनिल रतूड़ी द्वारा उन्हें महत्वपूर्ण मामलों में निष्पक्ष जांच करने से रोका गया। इसके बावजूद निष्पक्ष जांच जारी रखने के लिए उन्हें चेतावनी तक दी गई।
जब उन्होंने पत्राचार किया तब चेतावनी वापस ले ली गई लेकिन उत्पीडऩ जारी रहा।उन्होंने कहा कि 12 साल की सेवा में ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठ होने का इनाम आठ तबादले करके दिया गया।
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