मनरेगा मजदूरों को नहीं मिला मेहनत का पैसा,पढिये ये खबर

– मनरेगा मजदूरों को नहीं मिला मेहनत का पैसा!
– सचिव,ग्राम प्रधान,पंचायत मित्र पर गंभीर आरोप!

(विनोद मिश्रा)

बाँदा । ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा व्यवस्था पटरी पर होने का जिस तरह ढिंढोरा शासन और जिला प्रशासन की ओर से पीटा जा रहा है, उसकी हकीकत जमीनी स्तर पर उलट बांसुरी बजा रही है। बांदा जिले में मनरेगा कथित भ्रष्टाचार की पेंगे मार रहा है। मन रेगा की मजदूरी मजदूरों को नहीं मिल रही। तमाम को जाब कार्ड नहीं दिये जा रहे।

मनरेगा कार्य शोषण का तमाशा बन गया है।जिला बांदा में नजारे का उदाहरण बबेरु तहसील क्षेत्र के गांव मियां बरौली का उदाहरण से ही जान लीजिए । यहां मनरेगा मजदूरों की मेहनत का पैसा नहीं मिल रहा है । वहीं मनरेगा मजदूरों को जॉब कार्ड प्रधान के कहने पर पंचायत मित्र व सचिव के पास रखे हुए हैं, और जब मनरेगा की मजदूरी का पैसा आता है, तो किसी को मजदूरी दिया जाता है और किसी को कुछ नहीं दिया जाता।

मनरेगा मजदूरों में ग्राम प्रधान, सचिव वा पंचायत मित्र के प्रति रोष है। आरोप है की ग्राम प्रधान पंचायत मित्र व सचिव के पास रखे जॉब कार्ड से पैसा निकाल लिया जाता है। जॉब कार्ड धारकों को 200 से 400 रुपये पकड़ा दिया जाता है। जब समाजसेवियों के द्वारा मनरेगा मजदूरों को बताया गया कि आप की मेहनत व मजदूरी का पैसा इंटरनेट पर शो करता है।जब इंटरनेट पर मनरेगा मजदूरों नें अपना खाता चेक करवाया तो उनका पैसा निकल चुका था। जिससे मजदूर काफी परेशान हैं ।

मजदूरों ने बताया कि हमारा जॉब कार्ड बना हुआ है, और गांव के कुछ जॉब कार्ड पंचायत मित्र व सचिव के पास जमा है। जब हम मांगते हैं, तो नहीं दिया जाता, और जो पैसा आता है तो कहते हैं कि हम निकाल कर दे देंगे।जब हमनें इंटरनेट पर चेक करवाया तो हमारा पूरा पैसा निकाल लिया गया है। 2 वर्ष हो गए हमें मजदूरी का पैसा नहीं दिया गया, अभी बीच में हमने मनरेगा के तहत मजदूरी किया था।उसका भी मजदूरी का पैसा नहीं दिया गया। महिला मनरेगा मजदूर भी कहती हैं कि जॉब कार्ड बनवाने के लिए कहते हैं तो जवाब मिलता है कि आप मजदूरी करो पैसा दिया जाएगा। लेकिन पैसा हमको आज तक नहीं मिला ।

जॉब कार्ड भी नहीं बनाते। एक महिला राजू देवी मनरेगा का काम में लगभग 10 वर्षों से करती चली आ रही हूं, लेकिन मनरेगा की मजदूरी का पैसा समय से नहीं मिलता।जो मिलता है तो आधे मिलते हैं और आधे प्रधान और सचिव निकाल लेते हैं।जॉब कार्ड भी हमारा उन्हीं के पास जमा है। जॉब कार्ड जब मांगते हैं तो नहीं देते। कई बार सचिव से कहने पर भी हमारा पैसा हमको नहीं मिला है।

तो मनरेगा की कहानी की हकीकत जिले रेत के महल की तरह ढेर है। मुख्य विकास अधिकारी के संज्ञान में जब यह मामला लाया गया तो उन्होनें जांच का आश्वासन जरूर दिया। जांच कब शुरू होगी, कितनी निष्पक्ष होगी, परिणाम क्या सामने आयेगा। यह सब तो भविष्य ही बतायेगा।

 

 

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