खाकी में इंसान, राज्य के 11वे पुलिस महानिदेशक बने अशोक कुमार,

(विकास गर्ग)

देहरादून । अशोक कुमार राज्य के 11वें डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) के पद पर आशिन पढिये कुछ जानकारी। आईपीएस अशोक कुमार वर्ष 1989 के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी हैं। अपने लगभग तीन दशक के सेवाकाल में अविभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड पुलिस, आईटीबीपी और बीएसएफ के महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहे हैं। बीते वर्षों में उन्होंने कई विषयों पर पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें उनकी खाकी में इंसान बेहद प्रसिद्ध रही है।

आईपीएस अशोक कुमार की पहली पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में बतौर एएसपी हुई थी। उच्च पद पर होने के बाद और अपने मानवीय पहलू को उजागर करने के लिए देश में कई उदाहरण हैं। इन्हीं में से एक आईपीएस अशोक कुमार का नाम भी है। विभाग के लिए उनके समर्पण भाव को हर कोई जानता है, लेकिन उनके मानवीय पहलू से हर वो पीड़ित वाकिफ है जो इनके दर पर अपनी पीड़ा को लेकर पहुंचा है। क्योंकि, आईपीएस अशोक कुमार ने हर पीड़ित की उसकी उम्मीद से बढ़कर मदद की है।

जहां तक उनके कार्यकाल की बात है तो वे इन तीन दशकों में इलाहाबाद के बाद अलीगढ़, रुद्रपुर, चमोली, हरिद्वार, शाहजहांपुर, मैनपुरी, नैनीताल, रामपुर, मथुरा, पुलिस मुख्यालय देहरादून, गढ़वाल और कुमाऊं रेंज के आईजी के पद पर रह चुके हैं। इनके अलावा आईपीएस कुमार सीआरपीएफ और बीएसएफ में भी प्रतिनियुक्ति पर रह चुके हैं। इन सभी जगहों पर उन्होंने अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी है। आईपीएस कुमार वर्तमान में डीजी कानून व्यवस्था उत्तराखंड के पद पर हैं। वे आगामी 30 नवंबर को डीजीपी उत्तराखंड का पदभार ग्रहण करेंगे।

परिचयः अशोक कुमार का जन्म 20 नवंबर 1964 को हरियाणा के पानीपत जिले के कुराना गांव में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद आईआईटी दिल्ली से बीटेक और एमटेक की शिक्षा प्राप्त की

ये सम्मान रहे अशोक कुमार के नाम
वर्ष 2001 में कोसोवो में उत्कृष्ट कार्य के लिए यूनए मिशन पदक मिला था। वर्ष 2006 में दीर्घ एवं उत्कृष्ट सेवाअें के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुलिस पदक से सम्मानित किया गया।

पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना..इनता मुश्किल तो नहींः अशोक कुमार

तराई का अपराध खत्म करने में अहम भूमिका
आईपीएस अशोक कुमार के नाम कई महत्वपूर्ण काम रहे हैं। उनमें से एक 90 के दशक में तराई का अपराध खत्म करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। शाहजहांपुर, रुद्रपुर, नैनीताल आदि जगहों पर रहते हुए उन्होंने कई बदमाशों के एनकाउंटर किए। इनसे यहां का अपराध पहले की अपेक्षा बेहद कम हो गया। कुख्यातों को जेल भेजने से लेकर उन्हें मार गिराने में अशोक कुमार के नेतृत्व को सराहा गया।

….जब चली थी 3000 हजार गाेलियां
आईपीएस अशोक कुमार नैनीताल के एसपी देहात हुआ करते थे। उस वक्त रुद्रपुर जिला मुख्यालय होता था। नैनीताल के तलहटी में एक गांव के पास गन्ने के खेत में कुछ बदमाश छुपे होने की सूचना मिली तो उन्होंने फोर्स के साथ मोर्चा संभाला। यहां दोनों ओर से करीब 3000 हजार गोलियां चली थी। इस एनकाउंटर में दो कुख्यातों की मौत हुई थी। बात 1994 की थी, जिसके बाद से यहां का अपराध न्यूनीकरण की ओर चला गया।

शांतिपूर्वक रहा चमोली में उत्तराखंड आंदोलन
बात 1994 की है। अशोक कुमार चमोली के एसपी थे। उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था। लगभग सभी जगहों पर आंदोलनकारी शहीद हो रहे थे। लेकिन, उस वक्त चमोली ही एक ऐसी जगह थी जहां पर एक भी आंदोलनकारी शहीद नहीं हुआ था। पूरा आंदोलन शांतिपूर्वक रहा।

अर्द्धकुंभ पूरा कराया, हरिद्वार में बदमाशों से लिया लोहा
वर्ष 1995 में आईपीएस अशोक कुमार हरिद्वार में तैनात रहे। यहां उन्होंने कई मेले शांतिपूर्वक संपन्न कराए। इसके बाद उन्होंने आईजी गढ़वाल रहते हुए कई महत्वपूर्ण मेलों को शांतिपूर्वक पूरा कराया। अशोक कुमार हमेशा से अपने सरल स्वभाव के लिए जाने जाते रहे हैं।

प्रमुख लेखनः
चैलेंजेस टू इंटरनल सिक्यूरिटी- पुस्तक
मैन इन खाकी(खाकी में इंसान)- पुस्तक

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