मनोज श्रीवास्तव सहायक निदेशक की कलम से,परीक्षा की तैयारी दबाव नहीं, है एक खेल

 

 

 

(मनोज श्रीवास्तव प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा)

देहरादून। बोर्ड परीक्षा और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी एक रणनीति के तहत होनी चाहिए। हमारी रणनीति का प्रमुख अंग परीक्षा को एक खेल के रूप में लें, दबाव के रूप में नहीं। क्रिकेट में जब लम्बे स्कोर के लक्ष्य का पीछा करते समय विकेट पर टिकना पड़ता है। इसी प्रकार परीक्षा में हमें धैर्य के साथ जमना पड़ता है।

खेल की भांति परीक्षा में भी मनोबल बनाकर रखना होता है। मनोबल ही हमारी स्व की स्थिति में वृद्धि करने की विधि है। इसलिए हमें मनोबल बढ़ाने की विधि को भी जानना होगा। शिकायत रहती है कि हमने मनोबल बढ़ाने की विधि को जानने के बाद भी यह कार्य क्यों नहीं करती है। इसके लिए हम चेक करें कि हमने मनोबल बढ़ाने की विधि को केवल सूचना के स्तर पर लिया है अथवा ज्ञान के स्तर पर धारण भी किया है।

विधि जानने के दौरान हम चीजों के विस्तार में चले जाते हैं, किन्तु विस्तार को सार नहीं कर पाने के कारण प्राप्त सूचना को ज्ञान में नहीं बदल पाते हैं। अधिक विस्तार में जाने पर एक तो समय बहुत व्यर्थ जाता है और अधिक विचार करने के कारण शक्ति व्यय के प्रभाव से थकाव भी आ जाती है।

परीक्षा में सफलता के लिए हमें माइक्रो और मैक्रो लेबल की टाईम टेबल बनानी होती हैै। आज भी बड़े-बड़े वीआईपी अपने टाईम टेबल के कारण ही बड़ी-बड़ी सफलता प्राप्त करते हैं। पहले वे अच्छी प्लानिंग अपना समय सेट करके अपना टाईम टेबल बना लेते हैं और अपने एक-एक मिनट का हिसाब रखते हैं। यदि हम टाईम टेबल नहीं बनाते हैं तब विभिन्न विषयों में हमें कितना समय देना है, समय का उपयोग नहीं कर पाते हैं।

परीक्षा के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना भी आवश्यक है। जिस प्रकार हम अपने शरीर के लिए एक्सरसाईज करते हैं उसी प्रकार मानसिक मजबूती के लिए भी हमें ध्यान योग मेडिटेशन करना चाहिए।

जैसे एक बड़ा उद्योगपति टारगेट के आधार पर अपना कार्य करता है। वह देखता है कि अभी हमने इतना परसेंट टारगेट प्राप्त कर लिया है और शेष कार्य इतने दिन में पूरा कर लेना है। इसी प्रकार हमें अपने विषय पर टाईम टेबल बनाकर लक्ष्य आधारित मूल्यांकन करते रहना चाहिए।

यदि हम टाईम टेबल बना लेते हैं तब एक दिन में अनेक विषय को देख सकते हैं अन्यथा एक ही विषय को अनेक दिनों में भी पूरा नहीं कर सकते हैं।

परीक्षा की तैयारी के दौरान चेक लिस्ट का बड़ा महत्व होता है। जैसे-जैसे जो टापिक पूरा होता जाये टिक-सही का निशान लगाते चलें और जो नहीं हुआ है, उस पर क्रास का निशान लगा लें। विषय न पूरा होने का कारण जान लें और उसका निवारण, उपाय-साधन खोज कर आगे बढ़ते चलें। समस्या में नहीं उलझें बल्कि समाधान खोजने का प्रयास करें।

परीक्षा तैयारी के पूर्व दृढ़ संकल्प कर लें कि इसमें हमें पास होना ही है, यह कार्य में करके ही छोडू़गा। क्योंकि किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के पूर्व प्रतिज्ञा करनी होती है। फिर उसका प्लान बनाना होता है, पुनः उसे प्रैक्टिकल में करके दिखाना होता हैै। क्योंकि जब तक हम प्रैक्टिकल नहीं करेंगे हम फुल माक्र्स नहीं ले पायेंगे।

परीक्षा की तैयारी का एक भाग के प्रैक्टिकल में पास होने के बाद पुनः चेकिंग करनी होती है। जो बीत गया सो बीत गया अब पुरानी गल्ती नहीं करनी है और बड़ा लक्ष्य आगे रखना है। पिछले कार्य की कमियां छोड़ दें और खूबियों और विशेषताओं को पकड़ लें। इतना अटेंशन रखेंगे तब हम समय से पहले ही अपनी तैयारी पूर्ण कर लेंगे।

परीक्षा की सफलता के लिए दृढ़ता अत्यंत आवश्यक है। दृढ़ता है तब सफलता है। हम सुबह प्रतिज्ञा करते हैं कि अब नहीं करेंगे लेकिन शाम होते-होते उस प्रतिज्ञा को तोड़ देते हैं। अगले दिन पुनः प्रतिज्ञा करते हैं, फिर शाम को कहते हैं, क्या करें समय ही ऐसा आ गया था, जब समस्या समाप्त होगी तब करेंगे।

परीक्षा तैयारी के दौरान हमारे मनोभाव में उतार-चढ़ाव आता रहता है। जब हम हतोत्साहित होंगे तब कुछ श्लोगन का प्रयोग करें, जैसे हम परीक्षा पास करके छोडें़गे, हम स्काॅलरशिप लेकर ही छोड़ेंग, सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, अभी नहीं तो कभी नहीं, अभी नहीं करंेगे तब कभी नहीं करेंगे, मिटेंगे लेकिन हटेंगे नहीं, हम बनकर ही छोड़ेगे अथवा हम बनकर ही दिखायेंगे।

मोटिवेशनल श्लोगन से हमारी तैयारी में बाधा नहीं पड़ती है। इससे हमें अपने ऊपर निश्चय रखने में मदद मिलती है और हम निश्चय बुद्धि बनकर अच्छे रैंकिंग के साथ परीक्षा पास कर लेते हैं।

यदि हम रणनीति से कार्य करते हैं, तब हर कार्य सहज होकर हमारे बायें हाथ का खेल हो जाता है। परीक्षा की तैयारी हमारी मानसिक बुद्धि के तैयारी का खेल है।

 

 

 

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