शेर भी बकरी क्यो बन जाता है : मनोज श्रीवास्तव

 

थियरी पेपर तो सभी निकाल लेते है लेकिन प्रेक्टिकल पेपर में फेल हो जाते है, जो व्यक्ति अपने को शेर समझते है , वह प्रैक्टिकल में बकरी बन जाते है।

सिद्धान्तो का बखान करने वाले व्यवहार में धूल चाटते नजर आते है।

लेकिन हमारी सेफ्टी इसी बात में है। हम जितना हिम्मत रखेंगे उतना ही हमे मदद भी मिलेगी।

संशय बुद्धि रखकर कार्य करने पर हार मिलती है। प्रश्न है कि हम पहले से नकारात्मक दृष्टिकोण क्यो रख ले।

लेकिन नेगटिव अप्रोच के कारण मन मे चलता है कि यदि हम फेल हो गए तब क्या होगा। इसके स्थान पर हम पॉजिटिव अप्रोच के साथ यह सोच सकते है कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखाएंगे। हमारी सफलता हुई पड़ी है,सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

जब हम पॉज़िटिव दृष्टिकोण के साथ अपने ऊपर और कर्म के ऊपर अधिकार रखकर कार्य करते है तब हमे हमारी सफलता से कोई रोक भी नही सकता है।

इसलिये स्वप्न में भी यह संकल्प नही आना चाहिये कि ना मालूम क्या होगा,विजय मिलेगी अथवा नही मिलेगी।

जितना स्वयं में विश्वास भरेंगे उतना ही दूसरों को भी विश्वास दिलाना आसान होगा। आने वाली परिस्थितियों में हमारा विश्वास डगमगा जाता है लेकिन जब अपना दृष्टिकोण ऊँचा रखेंगे तब परिस्थितियों में डगमगाने से बच जाएंगे।

चैलेंज करने के लिये हिम्मत होनी चाहिये। हिम्मत की शक्ति रखने पर सर्वशक्तिमान भी हमारी मदद करते है।

अभी प्रैक्टिकल पेपर में भी पास होना है क्योंकि थिएरी पेपर में सभी पास हो जाते है परन्तु इंटरव्यू या प्रैक्टिकल पेपर में फेल हो जाते है।

यदि प्लान बना लिया है तब उसके अनुरूप तैयारी भी करनी होगी। कार्य के बीच विध्न – बाधा तो आएगी ही। लेकिन जब किसी कार्य को आवश्यक समझा जाता है तब उसका प्रबन्ध भी कर लिया जाता है।

कार्य के बीच माया को आने से रोकने का पहले से ही प्रबन्ध कर लिया जाए। इसके लिये सबसे पहले अपने को आत्मनिर्भर बनना होगा । आत्मनिर्भरता, आत्मा का ज्ञान आधात्मिक आधार से आती है। इसके परमात्मा को साथी बनाना होगा।

कमजोर शरीर पर बीमारी पहले लगती है। वैसे ही कोशिश शब्द के प्रयोग से हम कमजोर बन जाते है।

कोशिश शब्द का प्रयोग करना, हमारे कमजोरी को व्यक्त करता है। जहाँ कमजोर गेट मिलता है वही पर माया घुसने का प्रयास करती है। इसलिये कमजोरी के गेट पर सदैव पहरा देना है।

निश्चय में ही विजय है,निश्चयबुद्धि हमे निश्चिन्त बनाती है और हमारे विजय को निश्चित कर देती है।

जैसी स्मृति हमारी सारे दिन बनी रहती है उसी के अनुरूप स्वप्न भी दिखते है।यह हम सदैव शक्तिस्वरूप स्मृति में रहेंगे तब कमजोरी स्वप्न में भी नही आ सकती है।

अव्यक्त महावाक्य बाप दादा
5 मार्च 1971
मनोज श्रीवास्तव
प्रभारी मीडिया सेंटर
विधानसभा देहरादून।

 

 

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