(विकास गर्ग)
कोरोना ने तोड दी आम आदमी की कमर ।
लाक डाउन के कारण खत्म हुई लोगों की रोजी-रोटी।
आधे वेतनमान पर काम करने पर मजबूर हो गए हैं लोग।
देहरादून। कोरोना को लेकर लागू किए गए लाक डाउन ने कठोरता लोगों के कमर तोड़कर रख दी है। कई लोगों की रोज़ी रोटी भी छिन गयी है, वहीं कुछ लोग आधे वेतनमान पर ही काम करने के लिए मजबूर हो गए हैं। ऐसे लोगों के सामने अब आधा वेतन पर घर के खर्चों के साथ-साथ बच्चों की पढाई और अन्य चीजों से पडने वाला व्यय आने वाले समय में सिर का बोझ बन सकता है। काम धंधे चैपट हो जाने से लोग मानसिक रूप से भी परेशान नजर आ रहे हैं।
जानकारी के अनुसार देश में कोरोनासिस को लेकर लागू किए गए लाक डाउन में काम धंधे बंद हो जाने से मेहनतकश लोगों की कमर टूट गयी है। काम न मिलने से उनकी रोजी-रोटी भी छिन गयी है, जबकि कुछ लोग आधे वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हो गए हैं जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। जिले में हजारों लोग दिल्ली, करनाल, पानीपत आदि स्थानों पर फैक्ट्रियों में काम करते हैं लेकिन लाक डाउन के कारण फैक्ट्रियों बंद हो जाने से ऐसे लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो गया है। लाक डाउन में फंसे हजारों लोग पैदल ही किसी प्रकार भूखे प्यासे अपने-अपने घरों को तो पहुंच गए लेकिन अब उनके सामने काम धंधे की समस्या खडी हो गयी है। यही हालत शहर में भी दिखाई दे रही है। लाक डाउन के चलते बंद पडे कारोबार शुरू तो हो गए हैं लेकिन उनमें काम करने वाले श्रमिकों के वेतन पर इसका सटीक असर पडा है, कई दुकानदारों ने तब अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों से साफ कह दिया है कि अगर आधा वेतन पर काम करना हो तो करो, अन्यथा कोई दूसरा वेतन नहीं पा सकता है। दूसरे काम का विकल्प न होने पर बेबस कर्मचारी आधा वेतन पर ही काम करने पर मजबूर हो गए हैं, जिसका असर उनके घरेलू खर्च पर भी पड़ रहा है। आधा वेतन पर घर के खर्चों के साथ-साथ बच्चों की पढाई, फीस व अन्य चीजों पर होने वाला व्यय आने वाले समय में सिर का बोझ बन सकता है, जिससे लोग मानसिक रूप से परेशान हो रहे हैं। हालांकि सरकार द्वारा उठाए गए कदमों ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि इस दौरान कोई भी फीस या किश्त देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा लेकिन यह खर्च बाद में तो देना ही पडे़गा जिसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। कई लोगों का कहना है कि आय के स्तर को देखते हुए सरकार को कम से कम विद्यालयों की फीस माफी पर तो ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कुछ हद तक परिवारों के व्यय का बोझ कम हो सके। हालांकि जिले में कुछ फैक्ट्रियों का संचालन शुरू हो चुका है और उनके मालिकों ने अपने काम करने वाले श्रमिकों के वेतन में कटौती न करने व उनकी सहायता करने का भी आश्वासन दिया है।
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