दृढ़ संकल्प का फाउण्डेशन ,सफलता का आधार है

किसी भी कार्य की सफलता का आधार है- नालेजफुल और समझदार, बनना । समझदार बन गए तो हम स्वयं नॉलेजफुल बन हर संकल्प करेंगे, इससे हम संकल्प और सफलता दोनों का साथ साथ अनुभव करेंगे। अर्थात जो भी संकल्प किया वह तुरंत सिद्ध भी होगा।

हमे आज से यह दृढ़ संकल्प करना है कि हम स्वस्थिति में स्थित होकर अपने कार्य का श्री गणेश अर्थात् आरम्भ करे।

हमे ऐसे नहीं सोचना है, यह तो होता ही रहता है। हम संकल्प तो बहुत बार करते, लेकिन जो भी संकल्प करे वह दृढ़ हो।

जैसे फाउण्डेशन में पक्का सीमेन्ट आदि डालकर मजबूत किया जाता है – उसी प्रकार अपने संकल्पो का फाउंडेशन पक्का रखना है। अगर रेत का फाउण्डेशन बना दें तो, फाउंडेशन कितना समय चलेगा? यदि हम जिस समय संकल्प करते है, उस समय कहते है कि ,अच्छा करके देखेंगे, जितना हो सकेगा करेंगे, दूसरे भी तो ऐसे ही करते हैं। इसका अर्थ है कि हमने अपने संकल्प में यह रेत मिला है । इसके कारण हमारा फाउण्डेशन पक्का नहीं होता है।

दूसरों को देखना सहज लगता है। अपने को देखने में मेहनत लगती है। अगर दूसरों को देखने चाहते है और अपनी आदत से मजबूर है तो श्रेष्ठ को देखना चाहिये ।

मेहनत के बाद भी जितना होना चाहिए उतना फल नहीं प्राप्त होता है। इसका विशेष कारण है -परदृष्टि, पर चिंतन ,परपंच में जाना। हम परिस्थितियों के वर्णन और मनन में ज्यादा रहते हैं। इसलिए हमे पर दर्शन की जगह,स्व दर्शन चक्रधारी बनना है । स्व से पर खत्म हो जा जाता है।।

हमे बेफिक्र बादशाह बन कर रहना है। जब सारी दुनिया फिक्र में रहे तब भी हमे बेफिक्र बनकर रहना है। बेफिक्र बन कर दिन का आंरभ करे और बेफिक्र बन कर आराम की नींद ले। लेकिन बेफिक्र बनना तभी संभव है जब हम अपनी सभी जिम्मेदारी स्व को बच्चा समझ कर ,परमात्मा बाप को दे दे। जब बाप को जिम्मेदारी दे दी जाय तब बच्चा बेफिक्र बन जाता है।

बेफिक्र बनने का अर्थ है सारी जिम्मेदारी परमात्मा बाप की है और हम केवल निमित्त सेवाधारी है। हम केवल निमित्त कर्म योगी है। करावन हार, कराने वाला तो परमात्मा है ,हम तो केवल करने वाला ,निमित्त है।

निमित्त बनकर कर्म करने से फिक्र का टोकरा नही ढोना पड़ता है। यदि गलती से भी फिक्र का टोकरा सिर पर रख ले तब बेफिक्र बादशाह का ताज उतारना पड़ जाता है। यदि सिर पर बेफिक्र का बादशाह ताज पहन लें, तब सिर से फिक्र का टोकरा स्वतः उतर जाएगा।

बेफिक्र बनने के लिये दृढ़ संकल्प रखना होगा। जहाँ दृढ़ संकल्प है वहाँ सफ़लता है ही। दृढ़ संकल्प हो और सफलता न हो,यह हो नही सकता है।

यदि थोड़ा भी कमजोर संकल्प होगा तब सफलता में अंतर आ जाता है। दृढ़ता के पानी से सफलता का फल जल्दी निकलता है।

दृढ़ता और सफलता का आधार है किसी को न तो दुःख देंगें और न ही किसी दुःख लेंगें। कुछ लोग किसी को दुःख तो नही देते है लेकिन दुसरो से दुःख अवश्य ले लेते है। क्योंकि मन हमारे मन मे व्यर्थ संकल्प चलता रहता है।

हम व्यर्थ की बातें सुनकर दुःखी हो जाते है और अपने मन को भारी कर लेते है। मन भारी होने के कारण हम अपनी ऊँची स्थिति में नही उड़ पाते है ।

संकल्पो में दृढ़ता लाने का सीधा फार्मूला है, हम न तो व्यर्थ सोचे, न व्यर्थ बोले और न ही व्यर्थ करे। इसके लिये हमे पॉजिटिव रहना होगा। हम जो भी संकल्प करें वह पॉज़िटिव हो। लेकिन पॉज़िटिव संकल्प के लिये शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना रखना होगा। इसके अतिरिक्त मै और मेरा पन से दूर रहना होगा।
बहुत प्रयास करने के बाद हम अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लेते है। किंतु इच्छाओं का छोटा भाई क्रोध आ जाने के कारण फेल भी हो जाते है। लोग कहते है हम क्रोध तो नही करते है लेकिन थोड़ा रोब तो दिखाना ही पड़ता है।

संकल्पो में दृढता के लिये सन्तुष्ट रहना पड़ता है। संयम और नियम हमारे सन्तुष्टता का आधार बनता है। हमे तीन स्तरों पर सन्तुष्ट रहना होता है। पहला- स्वयं से सन्तुष्ट रहे, दूसरा- अपने कर्मो के परिणाम से सन्तुष्ट रहे ,तीसरा- अपने सम्बन्धियो से सन्तुष्ट रहे।

सन्तुष्टता के कारण हमारा कोई भी कर्म हमारे मन बुद्धि को विचलित नही करता है। हम स्वयं के लिये पूर्णतः निश्चय की अवस्था में रहते है ,हमारे अंदर किसी भी प्रकार का संशय नही उठता है। मैंने यह कर्म ठीक किया अथवा नही किया इस प्रकार का संशय नही आता है। क्योंकि इस स्थति में कर्म के बंधन में कोई कर्म नही करते है बल्कि स्वयं को निमित समझ कर सेवा भाव से कर्म करते है।
निमित्त समझ कर कर्म करने से हमारे भीतर विल पॉवर आ जाती है। विल पॉवर आने से हमे अतीन्द्रिय सुख और भरपूरता का अनुभव होता है। इसके कारण हमारे
कर्म का प्रभाव योग पर न पड़ता है है बल्कि योग का प्रभाव कर्म पर होता है। अर्थात स्व- स्थिति शक्तिशाली है तब पर-स्थिति कुछ बिगाड़ नही सकती है।

अव्यक्त महावाक्य बाप दादा
10 मार्च 1986
मनोज श्रीवास्तव
देहरादून।

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