(मनोज श्रीवास्तव सहायक निदेशक)
किसी मूल्य ,पुस्तक, व्यक्ति और विचार पर आस्था रखते हुए इसकी अभिव्यक्ति पूजा, मन्त्र ,जप तप और कर्मकांड के माध्यम से करना धर्म रिलीजन कहलाता है।
लेकिन आत्मा,परम् आत्मा और शुद्ध मूल्यों की मनसा,वाचा कर्मणा स्तर पर पालन करना आध्यात्मिकता के अंतर्गत आता है।
इसमें निम्न डिग्री की आत्मा से सर्वोच्च डिग्री की आत्मा का अध्ययन किया जाता है।
इसीलिये कहा जाता धर्म विहीन अध्यात्म तो सम्भव है किंतु अध्यात्म विहीन धर्म नही सम्भव है।
अर्थात धर्मिक व्यक्ति के लिये आधात्मिक होना जरूरी है किंतु आध्यात्मिक व्यक्ति के लिये धार्मिक होना जरूरी नही है।
अर्थात यदि कोई व्यक्ति किसी धर्म का पालन नही करता है फिरभी वह आध्यत्मिक हो सकता है।
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