गणेश जी को नही करना चाहिए विसर्जित,विघ्न हर्ता ही अगर विदा हो गए कौन हरेगा विघ्न

गणेश जी को नही करना चाहिए विसर्जित,विघ्न हर्ता ही अगर विदा हो गए कौन हरेगा विघ्न

(विकास गर्ग)

देहरादून। क्या कभी सोचा है गणेश प्रतिमा का विसर्जन क्यों?
अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा देखी, फैशनिया भकत या नकलची बनकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, और 3 या 5 या 7 या 11 दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करेंगे।


आप सब से निवेदन है कि आप गणपति की स्थापना करें पर विसर्जन नही । विसर्जन केवल महाराष्ट्र में ही होता हैं क्योंकि गणपति वहाँ एक मेहमान बनकर गये थे, वहाँ लाल बाग के राजा कार्तिकेय ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि वहीँ रही इनके रहने से लाल बाग धन धान्य से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

अब रही बात देश की अन्य स्थानों की तो गणेश जी हमारे घर के मालिक हैं और घर के मालिक को कभी विदा नही करते। वहीं अगर हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ लक्ष्मी जी व रिद्धि सिद्धि भी चली जायेगी तो जीवन में बचा ही क्या..? ऐसा करना, ऐसे में सहयोग ही सनातनधर्म-मर्यादा, श्रुतिस्मृति का घोर विरोधी महापाप और अधर्म और धर्म के‌ नाम पर धर्मनाश का कार्य है।

देखादेखी धर्मी बने हम बड़े शौक से कहते हैं गणपति बाप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ “
इसका मतलब हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को शास्त्रविरुद्ध जबरदस्ती पानी में बहा दिया, तो आप खुद सोचो कि आप किस प्रकार से नवरात्रि पूजा करोगे, किस प्रकार दीपावली पूजन करोगे और क्या किसी भी शुभ कार्य को करने का अधिकार रखते हो जब आपने उन्हें एक वर्ष के लिए भेज दिया ? इसलिए गणेश जी की स्थापना / पूजन तो करैं लेकिन विसर्जन कभी न करें।

अपने सनातन धर्म, शास्त्र, मर्यादा का मज़ाक और सवासत्यानाश न उड़ायें। सभी से निवेदन है समझदारी का परिचय दें, और सही तरह से गणेश आराधना करें।

सनातनधर्मी तो कभी भी गणेश विसर्जन न विसर्जन करता ,न उस विसर्जन तमाशे में जाता ,न ऐसे मंडप पंडाल में यजमान बनता। फिल्मी, फैशनबाजी, देखादेखी संक्रमण से जहां मर्यादाहीन बनकर स्वेच्छाचारिता से गणेश जी का विसर्जन किया जाना है वहां विसर्जन में‌ शामिल होना, उस विसर्जित कर ही दी जाने वालु प्रतिमा का पूजन, ऐसे में सहयोग सहयोग अर्पण महापाप, सनातनधर्म-मर्यादा के खिलाफ और अधर्म है।

बोलो सदैव घर में रहने वाले गजानन गणपति महाराज की जय।

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