इमोशनल इम्यूनिटी में, अभी नहीं तो कभी नहीं : मनोज श्रीवास्तव

 

(मनोज श्रीवास्तव सहायक निदेशक)

बदलती हुई परिस्थितियों में इमोशनल इम्यूनिटी बहुत कमजोर हो चुका है। कोरोना की परिस्थितियों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए विशेष निर्देश दिया है।

इस निर्देश के अनुसार लाकडाउन, के प्रभाव से मन्दी, जाॅब, कैरियर असुरक्षा के कारण हम बहुत मानसिक दबाव में होंगे।

हमारा हम किसी कार्य को टालते रहते हैं, कहते हैं फिर कर लेंगे, देख लेंगे, अभी तो बहुत समय पड़ा है। लेकिन जो व्यक्ति समय को महत्व नहीं देता है उसे समय महत्व नहीं देता है।

इसलिए हमें दो चीजों को सदैव याद रखना है, पहला एक तो स्वयं को और दूसरा समय को। समय के अनुसार समय को चेंज कर लेना है।

समय के अनुसार चेंज करने में हमारे सामने बहुत बाधाऐं भी आयेंगी। हम चेक करें कि अपने बदलाव की प्रक्रिया में कितना देर बाधा के प्रभाव में रहते हैं। हम बाधा से प्रभावित होने वाले समय को कम से कम रखें। अधिक से अधिक समय बाधा से मुक्त रहें।

वर्क, रेस्ट, एनर्जी और पुनः वर्क के चक्र में रह कर कार्य करें। ड्यूटी को समाप्त करने के पश्चात परिवार, समाज और संबंधों की आवश्यकता पर ध्यान देने से हमारी एनर्जी बढ़ती है। लेकिन इससे अधिक जरूरी आत्मिक उन्नति पर ध्यान देना होगा। शरीर निर्वाह के लिए हमारे पास अनेक साधन, टी.वी., शाॅपिंग माॅल, मूवी, रेस्टोरेंट, जाॅब कैरियर है। लेकिन आत्मिक उन्नति के साधन ज्ञान-योग-धारणा-सेवा और प्रणायमा, एक्ससाइज तथा मेडिटेशन पर भी ध्यान देना होगा।

आज मानसिक चिन्ता, मानसिक दबाव और परेशानी बढ़ती जा रही है। इसको हटाने के लिए केवल एक ही रास्ता है कि हम शरीर से हटकर अपनी आत्मा को भी याद कर लें। अपनी आत्मा के लिए समय निकाल लें। इसके लिए आध्यात्म पर बल देना होगा।

आत्मा पर ध्यान देने से हमारा आत्मबल और मनोबल में वृद्धि होगी तथा अपनी कमियों और विशेषता का पता चलेगा, ईगो समाप्त होगा। ईगो समाप्त हो जाने पर सब समस्याऐं स्वतः ही मिट जाती हैं।

अपने परखने की शक्ति को विस्तृत करना होगा। पांच इन्द्रियों से हम सीमित ज्ञान प्राप्त करते हैं लेकिन हमारे सामने असीमित चुनौतियां हैं। इसलिए असीमित चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपनी छठी इंन्द्रिय, इंट्यूटिव नाॅलेज को बढ़ाना होगा।

जैसे सांइस की मदद से दूर की चीज स्पष्ट दिखती है वैसे ही साइलेंस की मदद से हमें भविष्य की चीजें स्पष्ट दिखने लगती हैं। साइलेंस की शक्ति से न केवल हम स्वयं को समझ लेते हैं बल्कि दूसरों को भी समझ लेते हैं। हम जान लेते हैं कि दूसरा हम से क्या चाहता है। हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं।

हमारे भीतर अनन्त शक्ति मौजूद है परन्तु हम अपनी शक्तियों को भूल गये हैं। इसलिए जामवन्त बनकर अपनी शक्तियों को जागृत करना है और अपने बुद्धिबल को विकसित करना है।

व्यर्थ पर अटेंशन रखने से हम टेंशन से बच जायेंगे। अटेंशन रखकर अपने को चेक करना है कि हम विभिन्न परिस्थितियों में किस पोज में थे और कैसी प्रतिक्रिया दे रहे थे। अटेंशन न रहने से कर्म का टेंशन बना रहता है। व्यर्थ के कारण हम समर्थ नहीं हो पाते हैं। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ वाणी और व्यर्थ कर्म हमारे बाधा डालती हैं।

हमें केवल अपनी दुनियां तक ही सीमित रहना है बल्कि अपने परिवार, समाज के लिए भी समय निकालना है। जैसे धन के भिखारी भिक्षा लेने आते हैं, वैसे ही शान्ति के भिखारी भिक्षा लेने के लिए तड़पेंगी।

आने वाला समय दुखों से भरा होगा। केवल एक दुख की लहर में आत्माऐं लहराकर डूबते समय तिनके का सहारा खोजेंगे। हमारे पास ऐसे अनेक भिखारी मिलेंगे।

ऐसी आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए हमें आत्म सम्पन्न बनना होगा। हमें तुरन्त लोगों को राहत देनी होगी। आज डाक्टर के पास कोई भी मरीज जाकर लम्बे समय के कोर्स को नहीं करना चाहता है। आज का मरीज चाहता है कि केवल एक इंजेक्सन से उसका ईलाज हो जाए।

हमें स्वयं संतुष्ट रहकर सभी को संतुष्ट करना है। जो व्यक्ति स्वयं संतुष्ट नहीं होगा वह दूसरों को संतुष्ट नहीं कर सकता है। रूहानी डाॅक्टर तड़पती हुई आत्माओं को खुशी की एक खुराक देकर संतुष्ट कर देंगे।

लेकिन रूहानी डाॅक्टर बनने के लिए अपनी बैंक जमा के खाते का फाउण्डेशन मजबूत रखना है।
इसके लिए अभी नहीं तो कभी नहीं का श्लोगन ध्यान में रखते हुए यह निर्णय करना है कि हमें क्या करना क्या नहीं करना है।

चेक करें कि आज हम अपनी प्रगति की संतुष्टता का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिए हैं। अपनी सतुष्टता के सर्टिफिकेट से अपने को सर्टिफाइट करना है। दूसरों के दिलों का राज जानने के लिए हमें अन्तर्मुखी भी बनना है। जितना हम राज को जानेंगे उतना ही दूसरों को राजी कर सकेंगे। आलराउण्डर बनकर, एग्जाम्पल बनकर सैंपल बनना है।

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